सर्वं ज्ञानं प्रकाशयति
बनाएँ जीवन प्राणवान
ज्ञान  का दीप जलाएं
हर पन्ना एक प्रेरणा
हर शब्द एक नई शुरुआत
ज्ञान  का नया अनुभव
ज्ञानोत्सव आरंभ
आध्यात्मिक क्षण
सादर श्रद्धांजलि
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Eye View Enterprises Presents Pentastic Women

Riddhi Siddhi Tales of Strength & Spirit

Celebrating the Devi Within

"यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला क्रियाः॥"
(Where women are honored, there the gods rejoice; where they are not, all actions are fruitless.)
On the auspicious occasion of Ganesh Chaturthi (27 August 2025), blessed by Riddhi (Prosperity) & Siddhi (Wisdom), Eye View Enterprises launches a literary celebration exclusive for women writers culminating on Dusserah (2 October 2025), honoring the Devi within during Navratri.
Eyeview Photography Contest - 2025
Turning Pages, Inspiring Minds

Your Gateway to Endless Knowledge.

At Eye View Enterprises, we are driven by our passion for books and a commitment to creating an exceptional reading experience. With a curated selection, quality assurance, and a focus on building a community of book lovers, we aim to inspire, educate, and connect readers with the joy of reading.

We are more than just a publishing house; we are creators of experiences, preservers of memories, and champions of identities that carry the essence of who we are. By providing a nurturing, inclusive environment for authors, we enable unique voices to reach and resonate with readers worldwide.

  • To be the preferred publishing partner for authors seeking collaborative and quality-driven publishing experiences
  • To discover and nurture emerging voices while celebrating established authors
  • To create a bridge between traditional storytelling and contemporary narratives
  • To build a community that values literary excellence and cultural preservation
  • To set new standards in the publishing industry through innovative approaches
  • To make meaningful contributions to the literary landscape that resonate across generations

  • "पुस्तकें विचारों की सबसे अच्छी मित्र होती हैं।"
    "हर किताब एक नया संसार खोलती है।"
    मुकुल कानिटकर

    बनाएँ जीवन प्राणवान

    जनसामान्य के मन में सनातन धर्म से जुड़ी बातों और हिन्दू धर्म की वैज्ञानिकता के संबंध में कभी कभी संभ्रम होता है। तिलक क्यों लगाना, गोमाता की पूजा क्यों करना, घर में तुलसी वृंदावन क्यों बनवाना जैसे हिन्दुत्व से जुड़े छोटे-छोटे आचरणों को लेकर मन में अनेक प्रश्न अथवा शंकाएँ होती हैं। अतः वास्तुशास्त्र के पीछे का सायन्स, दैनिक जीवन में होनेवाली घटनाओं के पीछे का विज्ञान आदि रहस्यों को जानने, समझने और अपने जीवन में उतारने के लिए यह पुस्तक प्रत्येक घर में रखने तथा अपने सभी जानने वालों को उपहारस्वरूप भेंट करने के लिए अत्यंत उपयुक्त है। इस पुस्तक में चराचर जगत् में व्याप्त प्राण का अनुभव प्रत्यक्ष प्राप्त करने हेतु प्रैक्टिकल टिप्स प्रदान किए गये हैं। सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास हेतु इनका लाभ प्रत्येक व्यक्ति को अवश्य लेना चाहिए।

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    डॉ अनिल गजभिये, डॉ सत्यवान मेश्राम

    संवैधानिक सामाजिक न्याय: - एक चिंतन

    न्याय प्रतिष्ठित करण्यासाठी अधिकारांपेक्षा कर्तव्ये अधिक महत्त्वाची आहेत. संविधानाच्या ४२व्या संशोधनात 'समाजवादी' आणि 'सेक्युलर' हे विशेषणे जोडून बंधुतेला राष्ट्रीय एकता व एकात्मतेच्या दृष्टीने महत्त्व दिलं आहे.
    व्यक्तीला स्वातंत्र्य, न्याय, समानता मिळावी ही त्याची अपेक्षा आहे, तसेच राष्ट्रालाही व्यक्तीकडून बंधुतेची अपेक्षा आहे. अभिव्यक्ती स्वातंत्र्याला सीमा आहेत — सार्वजनिक सुव्यवस्था, नैतिकता व देशाच्या अखंडतेला धक्का पोहोचवणाऱ्या गोष्टींचा त्यात समावेश होऊ शकत नाही.
    सामाजिक न्याय साध्य करण्यासाठी फक्त 'नागरिक' असून भागत नाही, तर प्रत्येकाने 'राष्ट्रांग' होणं गरजेचं आहे. जसं शरीराची प्रत्येक क्रिया सामूहिक हितासाठी कार्य करते, तसं प्रत्येक व्यक्तीने राष्ट्रधर्म पालन करावा लागेल. यासाठी त्याग, समन्वय आणि परस्परपूरक सहजीवन आवश्यक आहे. - मुकुल कानिटकर

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    उमेश कुमार चौरसिया

    इदं राष्ट्राय स्वाहा

    यह नाट्यकृति “इदं राष्ट्राय स्वाहा” राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर ‘श्रीगुरूजी’ के जीवन पर आधारित प्रेरणादायी रचना है। इसमें उनके युवाकाल से लेकर महाप्रयाण तक की जीवनयात्रा, त्याग, समर्पण और राष्ट्रनिष्ठ कार्यों का प्रभावशाली चित्रण है। नाटक डॉ. हेडगेवार जी द्वारा संघ की स्थापना, संघ प्रार्थना की गहन साधना और श्रीगुरूजी द्वारा विवाह न कर पूर्णकालिक रूप से देशसेवा के संकल्प जैसे प्रसंगों को उजागर करता है। कठिन परिस्थितियों, संघ पर लगे प्रतिबंध और उसके बाद भी संगठन के पुनर्विस्तार की दृढ़ता इसमें दिखती है। यह कृति संघ के ध्येय, भारतनिष्ठा तथा भ्रांतियों के निवारण को स्पष्ट करती है और युवाओं व स्वयंसेवकों में राष्ट्रप्रेम व सेवा भाव जगाती है। विद्यार्थियों और शोधार्थियों के लिए उपयोगी होने के साथ यह सहज मंचनीय भी है। उमेश कुमार चौरसिया

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    ज्ञान का प्रकाश ही जीवन का सही मार्गदर्शन करता है - "स्व. श्री आशुतोष हरप्रसाद श्रीवास्तव"

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